शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

धरती का चर्म रोग है आदमी


जिला कलक्टर डॉ के के पाठक ने वन विभाग की ओर से आयोजित पर्यावरणीय कानून एवं संरक्षण विषयक कार्यशाला का उद्घाटन किया
चूरू, 19 फरवरी। वन विभाग की ओर से जिला मुख्यालय स्थित पेंशनर भवन में शुक्रवार को आयोजित कार्यशाला में पर्यावरण से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर गहन विचार-विमर्श हुआ। मुख्य अतिथि जिला कलक्टर डॉ के के पाठक ने दीप प्रज्जवलित कर इस ‘पर्यावरणीय कानून एवं पर्यावरणीय संरक्षण’ विषयक कार्यशाला का शुभारंभ किया।
इस मौके पर जिला कलक्टर डॉ के के पाठक ने कहा कि प्रकृति ने आदमी को बड़े ही करीने से बनाकर उसके सुखमय जीवन के लिए सीमाएं तय की हैं लेकिन तथाकथित विकास के दंभ में आदमी ने इन सीमाओं को तोड़ दिया है और अब वह प्रकृति को नष्ट करने पर तुला हुआ है। उन्होंने कहा कि आदमी स्वयं धूल उछालता है और फिर दिखाई नहीं देने की शिकायत भी करता है। उन्होंने अवतार फिल्म का उदाहरण देते हुए बताया कि जब हम पेड़ काटते हैं तो वास्तव में प्राण नष्ट कर रहे होते हैंं। हम कालिदास की तरह जिस डाल पर बैठे हैं, उसी को काट रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि हमने प्रकृति के साथ छेड़छाड करना बंद नहीं किया तो प्रकृति हमें माफ नहीं करेगी। प्राकृतिक संतुलन के लिए अधिकाधिक पौधरोपण जरूरी है।
अपने चिर-परिचित दार्शनिक अंदाज में जिला कलक्टर ने कहा कि प्रकृति ताश के पत्तों के महल की तरह है, इसमें से एक पत्ता निकालने का अर्थ है कि हम सारी व्यवस्थाएं ध्वस्त करने पर तुले हुए हैं। जब चार पेड़ कटते हैं तो चालीस पक्षियों के आशियाने उजड़ते हैं और कई तरह की विसंगतियों और विडंबनाओं का जन्म होता है। उन्होंने बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन का जिक्र करते हुए कहा कि 41 हजार प्रजातियां रेड बुक में आ गई हैं। उन्होंने कहा कि अरबों साल पुरानी इस धरती को अब तक के बड़े-बडे महाविनाश नहीं मिटा पाए लेकिन अब स्थिति इतनी विकृत हो गई है कि कोई भी वैज्ञानिक यह दावा करने में समर्थ नहीं है कि आने वाले सौ साल भी यह पृथ्वी टिक पाएगी। उन्होंने कहा कि प्रकृति में प्रत्येक तरह की आवश्यकता पूर्ति की क्षमता है लेकिन हमारे हर तरह के लोभ का पोषण उसके भी बस की बात नहीं। गिरते भूजल स्तर की चर्चा करते हुए जिला कलक्टर ने कहा कि पानी के लिए हम धरती की छाती को अधिक से अधिक छलनी किए जा रहे हैं लेकिन अब यह सब भी 50 साल से ज्यादा नहीं चलने वाला। उन्होंने शेखावाटी के लोगों की जल संरक्षण की परंपरा की सराहना करते हुए कहा कि बरसाती पानी के संग्रहण के लिए हमारे द्वारा बनाए जाने वाले जिन कुंडों और टांकों की तकनीक के चलते पूरी दुनिया हमसे प्रेरणा लेती है, हम स्वयं उन प्रयासों की अवहेलना कर रहे हैं। दुनिया जो बात हमसे सीख रही है, स्वयं हमने उसी को भुला दिया है। उन्होंने बढ़ती आबादी की ओर ईशारा करते हुए कहा कि दुनिया में अब तक जितने लोग मर चुके हैं, उनसे अधिक आबादी इस वक्त धरती पर है। उन्होंने प्रख्यात दार्शनिक नीत्शे को उद्धृत करते हुए कहा कि आदमी धरती का चर्म रोग है। वह जहां भी रहता है, धरती के सौंदर्य को नष्ट करता है। उन्होंने ग्लॉबल वार्मिंग की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए कहा कि आज से 50 साल पहले पृथ्वी को खतरा इस बात से था कि वह लगातार ठंडी होती जा रही है और बर्फ में बदल जाने वाली हैं। औद्योगिक क्रांति ने इस समस्या के स्वरूप को इस कदर बदल दिया है कि अब लगातार बढ़ता तापमान विश्व के लिए बड़ा खतरा है। उन्होंने कहा कि हम प्रदूषण के लिए उद्योगों को कोसते हैं लेकिन अकेले वही इसके लिए जिम्मेदार नहीं हैं। कहीं न कहीं हम सभी प्राकृतिक संसाधनों के दुरूपयोग के जिम्मेदार हैं।
नगर परिषद सभापति गोविंद महनसरिया ने वन विभाग की जमीनों पर अतिक्रमण की समस्या का जिक्र करते हुए अधिकाधिक पौधरोपण को पर्यावरण संतुलन के लिए एकमात्र उपाय बताया। उप वन संरक्षक के सी शर्मा ने कार्यशाला के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि विकास के साथ प्रकृति के विनाश की विडंबना जुड़ी हुई है। विकास को नहीं रोका जा सकता है लेकिन सामंजस्य जरूरी है। उन्होंने ग्लॉबल वार्मिंग के खतरों से आगाह किया। सहायक वन संरक्षक मनफूल सिंह ने आयोजकीय रूपरेखा प्रस्तुत की। संचालन एसीएफ जयप्रकाश ने किया। कार्यशाला के दौरान विधि व्याख्याता श्रवण कुमार सैनी ने पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कानूनों की जानकारी देते हुए बताया कि पर्यावरण की शुद्धता का अधिकार जीवन जीने के अधिकार के रूप में मूल अधिकारों में शामिल किया गया है। व्याख्याता महमूद खान ने पर्यावरण प्रदूषण के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए व्यापक चेतना की आवश्यकता बताई। इस मौके पर जलदाय विभाग के अधीक्षण अभियंता अनिल श्रीवास्तव, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अभियंता आर के बोहरा, पेंशनर समाज के मोहनलाल शर्मा, रेंजर दिलीप सिंह,, राकेश दुलार, शेरसिंह बीदावत सहित अधिकारी, जनप्रतिनिधि, पर्यावरण प्रेमी, एनजीओ प्रतिनिधि और नागरिक मौजूद थे।

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